हमारे शरीर में उदर प्रदेश के मध्य में नाभि है। यौगिक शरीर विज्ञान के अनुसार नाभि के नीचे एक गोलाकार कन्द है। इसी स्थान से संपूर्ण शरीर में फैली हुई 72 हजार नाड़ियों की उत्पत्ति हुई है। जिनसे होकर प्राण-ऊर्जा-प्रवाह शरीर में सब जगह पहुँचता है।
नाभि संस्थान में मणिपूर नाम का सूक्ष्म चक्र है। यह सूर्य से संबंधित केंद्र है, जो पाचन की प्राणमयी क्रिया एवं भोजन के शरीर में शोषण की गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
नाभि क्यों खिसकती है?
नाभि खिसकने या उतरने के पीछे कई कारण होते है, जैसे:
खेलना
दौड़ना
सीढ़ियां चढ़ना
ज्यादा भार उठाना
अचानक मुड़ना या झुकना
अत्यधिक मसालेदार भोजन करना
भावनात्मक या मानसिक चिंता
जो व्यक्ति एक पैर पर ज्यादा देर तक दबाव डालकर खड़े होते हैं, या भार उठाते समय एक तरफ वजन ज्यादा देते हैं, उनकी नाभि भी खिसक सकती है। इसके अलावा पैर को झटकने से भी नाभि खिसक जाती है।
नाभि के खिसकने पर घबराहट, जी मिचलाना, उल्टी, कब्ज, पेट में दर्द, दस्त और पाचनतंत्र में गड़बड़ी होनी शुरू हो जाती है।
शारीरिक रोग ही नहीं, आलस्य, थकान, चिड़चिड़ाहट, काम में मन न लगना, दुश्चिंता, निराशा, अकारण भय जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों की उपस्थिति नाभि चक्र की अव्यवस्था की उपज होती है। अपनी मनोशारीरिक समस्याओं से आक्रांत व्यक्ति वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में योग के आसन, प्राणायाम, ध्यान आदि अपनाते हैं। लंबे समय अभ्यास करने के बावजूद अनेक लोग शिकायत करते हैं कि अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहा है। योगाभ्यास का शरीर एवं मन पर पड़ने वाला सकारात्मक प्रभाव वैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा प्रमाणित तथ्य है। ऐसे में यौगिक क्रियाओं का लाभन मिलने का प्रमुख कारण यह है कि व्यक्ति योगाभ्यास अपनाने से पूर्व अपने नाभि मंडल की स्थिति की ओर ध्यान नहीं देता, न ही किसी योग शिक्षक से परामर्श लेता है।
नाभि में किसी प्रकार की विकृति होने की स्थिति में उसे ठीक करने के लिए योग शिक्षक की सहायता ली जाना चाहिए। वे अपनी विशिष्ट तकनीक द्वारा नाभि चक्र व्यवस्थित कर देते हैं। यदि योग शिक्षक उपलब्ध न हो तो व्यक्ति स्वयं अपनी नाभि ठीक कर सकता है। इसके लिए आगे बताए जा रहे आसनों का क्रम से नियमित अभ्यास करना चाहिए।